अधिकतर महिलाएं इस काम में हालांकि अपने घर-परिवार की मजबूरी के चले ही आती हैं। बच्चों को दो वक्त की रोटी नहीं जुड़ती, शराब, जुआरी या नशेड़ी पति पैसा कमा कर लाने की बजाए उसी का सौदा करने पर उतारू रहता है, या फिर छोटी उम्र में पिता का साया उठ जाने पर और मां की दूसरी शादी होने पर सौतेला बाप जहां लड़की को पहले अपनी हवस का शिकार बनाता है और फिर उसे पैसा कमाने का जरिया। आज सूचना टैक्नोलाॅजी के चलते ये धंधा आश्चर्यजनक तरीके से हाईटेक हुआ है। ढेरों वेबसाइट्स पर अब हाई प्रोफाइल काॅल गल्र्ज के फोटो, फोन नंबर यहां तक कि रेट तक लिखे मिल जाएंगे जिनमें कालेज छात्राएं, माॅडलस व सिनेमा टीवी की अभिनेत्रियों को उपलब्ध करवाने तक के दावे किए होते हैं। आधुनिक समाज में बहुत सी लड़कियां ऐशपरस्ती की चाह में भी इसे पेशे के तौर पर अपना रही है। वेश्यावृति की ये बुराई समाज में आज या कल की नहीं बल्कि सदियों पुरानी है। राजा-महाराजाओं के वक्त हालांकि ये इस रूप में कतई नहीं थी। जिस रूप में आज फैल रही है।
चंडीगढ के साथ लगते शहर पंचकुला, जीरकपुर, मोहाली व खरड़ इस मामले में तनिक भी पीछे नहीं है। असल में ऐसे अपराधों का तंत्र इतना मजबूत होता है कि इन्हें भेदना अर्जुन सरीखे योद्धा के लिए भी टेढी खीर ही है। इसे सिर्फ सरकार की नीतियों व नीयत के सहारे ही काबू किया जा सकता है।
चंडीगढ जैसे आधुनिक शहर में तो ये बिमारी पिछले कुछ वर्षों में महामारी की तरह फैली है। आए दिन इस धंधे में लिप्त लोगों के पकड़े जाने की खबरें आती है। दरअसल नौकरी या पढाई के लिए होस्टल अथवा पीजी इत्यादि में रहकर अपनी स्वतंत्रता का जिस तरह दोहन किया जा रहा है वह बुद्धिजीवी वर्ग के लिए जहां चिंता व हताशा का विषय है वहीं समाज व शासन तंत्र के मुंह पर तमाचे सरीखा है। ज्यादातर ब्यूटी पार्लर व मसाज केन्द्र इसी धंधे में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में सांझीदार बने हुए हैं। शहर के कई ढाबे एजेंट या दलाल की भूमिका अदा करते हैं। शहर के अधिकतर होटल व गेस्ट रूम भी इसी धंधे के सहारे कमाई का अच्छा-खासा साधन बने हुए हैं। इधर बस अड्डों व रेलवे स्टेशनों पर देर रात तक चलने वाले रिक्शा व आटो रिक्शा भी इसी धंधे के सहारे मोटा कमिश्न हथियाते हैं। छोटी-मोटी कालोनियों में यह धंधा पुलिस तंत्र के सरंक्षण में ही चलता है इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता। नतीजतन आसपास रहने वाले शरीफ लोग दुःखी होते हुए भी खामोश रहने में ही अपनी भलाई समझते हैं।
प्राप्त जानकारी के अनुसार सैक्टर 22, 35, 43 के अधिकतर होटल दशकों से जिस्म फिरौशी का धंधा करने वालों का पंसदिदां अड्डा बने हुए हैं। पुलिस तंत्र इस सारे खेल में या तो मूक तमाशबीन की भूमिका निभाता है अथवा ऐसे लोगों से अच्छी खासी हफ्ता वसूली करता है। किसी नेता या अधिकारी का दबाव पड़ने पर या खानीपूर्ति या अपनी सक्रियता दिखाने हेतु बीच-बीच में छापेमारी की जाती है और कमिश्न देने में आनाकानी करने वाले लोगों को पकड़ कर धंधा बंद करवा कर वे लोग खूब वाह-वाही लूटते हैं। हालांकि कड़वी सच्चाई यह है कि ऐसे लोग अक्सर जमानत पर छूटते ही किसी दूसरी जगह फिर से अड़डा जमा लेते हैं। चंडीगढ के साथ लगते शहर पंचकुला, जीरकपुर, मोहाली व खरड़ इस मामले में तनिक भी पीछे नहीं है। असल में ऐसे अपराधों का तंत्र इतना मजबूत होता है कि इन्हें भेदना अर्जुन सरीखे योद्धा के लिए भी टेढी खीर ही है। इसे सिर्फ सरकार की नीतियों व नीयत के सहारे ही काबू किया जा सकता है।
सरकार जब तक लोगों को उनकी काबलियत के हिसाब से सम्मानजनक रोजगार मुहैया नहीं करवाती, प्रत्येक व्यक्ति दिनभर की कड़ी मेहनत के बाद सकून की नींद नहीं सोता, नशीले पद्वार्थों को तस्करी व सेवन पर पूर्वतः प्रतिबंध नहीं लगता, तब तक ऐसे धंधे गरीब व मजबूर महिलाओं की तकदीर बने रहेंगे और भारतीय समाज धीरे-धीरे बेशर्मी की सारी हदें पार करता रहेगा।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रशंसक इस मामले में नरेन्द्र मोदी सरकार से बेहद उम्मीदें लगाए बैठे हैं। उनका कहना है कि पहले कभी किसी ने इस तरफ ध्यान केन्द्रित ही नहीं किया। इसीलिए ये बुराई सुरसा के मुंह की तरह बढ़ती गई लेकिन आरएसएस चूंकि पारिवारिक एवं सामाजिक जीवन में शुचिता की पक्षधर है अतः मौजूदा सरकार इस मामले में अवश्य सख्त कदम उठाएगी। कुछ लोग बेशक सरकार द्वारा गठित विधेयक में कई खामियां निकाल रहे हैं। प्रस्तावित विधेयक के अनुसार कोई भी सामाजिक कार्यकर्ता अथवा जागरूक नागरिक ‘पीड़ित’ को बचाकर जिला तस्करी विरोधी समिति (जिसका गठन प्रस्तावित है) के सामने पेश कर सकता है। इस पर सवाल उठाया जा रहा है कि तस्करी विरोधी समिति के सदस्यों की कौन गारंटी लेगा कि वे दूध के धुले हैं। जैसा कि अक्सर होता है कि पावरफुल ओहदा देखकर गलत व खोटी किस्म के लोग उन पर काबिज होने की कोई न कोई जुगत भिड़ा ही लेते हैं। अतः पीड़ित लोगों को वे फिर से शोषण का शिकार बना सकते हैं। सरकार को इस पर गंभीरता से विचार करना होगा कि बिल्ली को ही दूध की रक्षा करने की जिम्मेदारी दे दी तो इस धंधे में कई नए आयाम जुड़ते चले जाएगे जिसके परिणाम घातक होंगे।
ताजा मामले में दिल्ली पुलिस द्वारा गारस्टिन बास्टिन रोड पर कोठे चलाने वाले व्यक्ति आफाक हुसैन को पत्नी सायरा व अन्य छ: लोगों सहित गिरफ्तार करने का है। पुलिस खुलासे के मुताबिक जीबी रोड पर उसके 6 कोठों पर 40 कमरे थे जहां नेपाल, झारखण्ड, बंगाल व बिहार से लड़कियां लाई जाती थी। पुलिस के अनुसार इस व्यक्ति की प्रतिदिन की कमाई 10 लाख रूपए से उपर थी। अब सवाल उठता है कि आफाक हुसैन ने इतना बड़ा कारोबार क्या एक—दो या दस दिन में खड़ा कर लिया जिसकी पुलिस को भनक भी नहीं लगी। और फिर जीबी रोड पर तो ऐसे बहुत से कोठे हैं, जिन पर मजबूर और असहाय लड़कियां होगी, इन दलालों की कमाई भी लाखों में होगी। क्या उन लड़कियों को बचाना और इन दलालों को पकड़ना किसी ओर का काम है। इन छ: कोठों में काम करने वाले 250 लड़कियों को तो सेक्स के चंगुल से बचाने का श्रेय दिल्ली पुलिस ले रही है किन्तु जो दूसरी हजारों मासूम लड़कियों का शोषण करके आफाक हुसैन जैसे दूसरे दलाल ऐसे हथकंडे इस्तेमाल करके लाखों—करोड़ों की कमाई कर रहे हैं उनको सलाखों के पीछे पहुंचाने की जिम्मेदारी भी क्या पुलिस की नहीं है। कहीं इस सेक्स रैकेट का भण्डा फोड़ मात्र अंधे के पैर के नीचे बटेर आ जाने जैसा मामला तो नहीं। यदि यह दिल्ली पुलिस की कोशिशें व सक्रियता का मामला है तो शेष दलालों पर भी हाथ डालने की जरूरत है कि उनके ऐसे काले धंधों पर नकेल डाली जा सके।
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