•  फर्जीवाड़े के ढेर पर खड़ा भगत फूल सिंह महिला विश्वविद्यालय



 

गोहाना । ( ब्यूरो ) 


 मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की इस बात में पूरा दम नजर आता है कि पहले की सरकारों में बिना खर्ची और बिना पर्ची के कोई नियुक्ति नहीं होती थी। हुड्डा सरकार के समय 2006 में बनाए गए भगत फूल सिंह महिला विश्वविद्यालय, खानपुर, गोहाना ने तो फर्जीवाड़े का नया इतिहास रचने का काम किया है।

 पिछले दिनों लाखों रुपए के भ्रष्टाचार का पर्दाफाश होने के बाद कब विश्वविद्यालय में नौकरियों के बड़े फर्जीवाड़े का पता चला है। 14 साल से चल रहे इस फर्जीवाड़े की फाइल पर विश्वविद्यालय के अधिकारी कुंडली मारकर बैठ गए हैं और प्रदेश सरकार को इसकी हवा भी नहीं लगने दी है।

 इस नौकरी घोटाले के कारण प्रदेश सरकार को जहां 20 करोड से अधिक का चूना लग चुका है वहीं दूसरी तरफ होनहार युवकों के युवाओं के अधिकार पर डाका डालने का काम किया गया।

 2006 में गुरुकुल से विश्वविद्यालय में बदले गए भगत फूल सिंह महिला विश्वविद्यालय, खानपुर में 2007 में कांटेक्ट पर भर्तियां निकाली गई।

 इन भर्तियों के विज्ञापन में एक साजिश के तहत कई तरह की गड़बड़ियां की गई। विश्वविद्यालय स्थापना के 2006 के अधिनियम की धारा 14 के अनुसार विश्वविद्यालय अपने स्तर पर न तो नियुक्तियां कर सकता है,

 ना पोस्ट घटा सकता है

ना पोस्ट बढ़ा सकता है

 ना वेतनमान कम कर सकता है

 ना वेतनमान बढ़ा सकता है।

इनके बारे में उन्हें प्रदेश सरकार से अनुमति लेनी होती है और विज्ञापन में यह दिखाना होता है कि

 -कौन से विभाग में कितने पद हैं???

- उनका ग्रेड क्या है??

 -उनका वेतनमान क्या है???

 -वह सेल्फ फाइनेंस है या गवर्नमेंट ऐडेड है??

-वह कांटेक्ट वाले हैं या रेगुलर हैं???


विश्वविद्यालय की नौकरियों में बंदरबांट करने के लिए विज्ञापन में ही भारी फर्जीवाड़ा कर दिया।

 -विज्ञापन में ऊपर विश्वविद्यालय का नाम ही नहीं दिया गया।

 -किस विभाग में कितनी पोस्ट है इसका कोई जिक्र नहीं किया गया। 

-वेतन कितना दिया जाएगा इसका कोई उल्लेख नहीं किया गया। सिर्फ यह लिख दिया कि कैंडिडेट और विश्वविद्यालय की आपसी सहमति के अनुसार वेतन दिया जाएगा जिसे बढ़ाया भी जा सकता है।

-परमानेंट है या कांटेक्ट पर है इसका भी कोई जिक्र नहीं किया गया।

- सेल्फ फाइनेंस है या गवर्नमेंट स्पॉन्सर्ड है इसका भी कोई उल्लेख नहीं किया गया। 

बेरोजगार युवाओं को गुमराह करते हुए दिए गए इस विज्ञापन में सिर्फ अपने चहेते लोगों को नौकरियां दे दी गई और यूजीसी का पूरा ग्रेड दे दिया गया।

 15 लोगों की नियुक्ति प्रोफेसर पद पर इस नौकरी घोटाले के जरिए दे गई।

खास बात यह है कि दिए गए विज्ञापन में Law विभाग का नाम भी नहीं था लेकिन उसमें 5 नियुक्तियां कर दी गई। यानी बिना विज्ञापन के ही परमानेंट नियुक्तियां कर दी गई।

 यही कारनामा फोरेन लैंग्वेज विभाग में भी किया गया। रशियन लैंग्वेज का उसमें जिक्र नहीं होने के बावजूद एक प्रोफेसर रशियन लैंग्वेज का लगा दिया गया।

 दिए गए विज्ञापन में 5 विभाग ऐसे हैं जो 14 साल बाद भी शुरू नहीं हो पाए हैं। यानी विज्ञापन टाइप करने वाले के दिमाग में जो जो विभाग आते गए उनका नाम टाइप कर दिया गया।

 सत्ता से जुड़े लोगों के रिश्तेदारों और परिजनों को इस फर्जीवाड़े के जरिए नौकरियां दी गई। लगाए गए अधिकांश लोग रोहतक और उसके आसपास के हैं जिससे यह साबित होता है कि सत्ता के रसूख के बलबूते पर इस नौकरी घोटाले को अंजाम दिया गया।

 सरकार की बिना सहमति के और सरकार की आंखों के नीचे ही बिना किसी नियमित विज्ञापन के 15 प्रोफेसरों को भर्ती कर दिया गया।

 2016 में कुछ लोगों को इस फर्जीवाड़े की जानकारी मिली तो उन्होंने विश्वविद्यालय के अधिकारियों को इसकी जांच कराने की मांग की लेकिन विश्वविद्यालय के कर्ताधर्ताओं ने खुद को और पूर्ववर्ती लोगों को बचाने के लिए शिकायत पर कोई कार्रवाई नहीं की।

 5 साल बाद भी फर्जीवाड़े की शिकायत विश्वविद्यालय के कुलपति और रजिस्ट्रार के कार्यालय में धूल फांक रही है लेकिन इसके बारे में कोई सुनवाई नहीं की गई।

 मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर बार-बार यह दावा करते हैं कि नौकरियों में फर्जीवाड़ा करने वाले लोगों को बख्शा नहीं जाएगा।

 हुड्डा सरकार में गलत तरीके से दी गई नौकरियों के कारण हजारों युवा पहले ही नौकरियां खो चुके हैं ऐसे में भगत फूल सिंह महिला विश्वविद्यालय में हुए इस नौकरी घोटाले में शामिल लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए।

 बेरोजगार योग्य युवाओं के हक पर डाका डालते हुए चहेते लोगों को फर्जी तरीके से नौकरियां देने के लिए जिम्मेदार विश्वविद्यालय के अधिकारियों के खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए।

 हुड्डा सरकार में तो सत्ता से नजदीकियों के चलते इस घोटाले को पूरी तरह से दबाकर रखा गया और खट्टर सरकार में भी साढ़े 6 साल तक इस घोटाले की भनक सरकार तक नहीं पहुंचने दी गई।

 मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर को भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस नीति के अनुसार इस बड़े भर्ती घोटाले में शामिल लोगों के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए और फर्जी तरीके से लगे लोगों को नौकरी से हटा कर योग्य युवाओं को रोजगार का हक देने का काम करना चाहिए।

 अब देखना यह है कि मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर भ्रष्टाचार पर जीरो टोलरेंस के दावे पर खरा उतरते हैं या वह भी इस घोटाले पर आंखें मूंदकर चुप्पी साध जाते हैं।

 इस घोटाले की तह में जाने के लिए मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर को किसी वरिष्ठ आईएएस अधिकारी की अगुवाई में कमेटी बनाकर जांच बैठाने चाहिए तभी इस पूरे घोटाले का दूध का दूध और पानी का पानी होना संभव हो पाएगा।

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