न्यूरोजेन ब्रेन ऐंड स्पाइन इंस्टीट्यूट मस्क्युलर डिस्ट्राफी से पीड़ित मरीजों के लिए एक नई आशा प्रदान करता है

चंडीगढ़ के दीनबंधु रॉय को न्यूरोजेन के स्टेम सेल थेरेपी ट्रीटमेंट से मिला जीवन का नया उपहार

चंडीगढ़, 28 सितंबर 2016: नवी मुंबई के नेरुल स्थित न्यूरोजेन ब्रेन ऐंड स्पाइन इंस्टीट्यूट, जो भारत का अग्रणी स्टेम सेल थेरेपी सह पुनर्वास केंद्र है; स्टेम सेल थेरेपी और रीहैबिलेशन के माध्यम से एक लाइलाज दुर्बल करनेवाली बीमारी मस्क्युलर डिस्ट्राफी (पेशी अपविकास) से पीड़ित मरीजों के लिए नई आशा की पेशकश करता है।
मस्क्युलर डिस्ट्राफी के मामले दुनिया भर में सभी वर्गों में देखने को मिलते हैं। इसके मामलों में कुछ विविधताएं देखने को मिलती हैं, क्योंकि इसके कुछ स्वरूप दूसरों की तुलना में अधिक आम हैं। यह बच्चों में सबसे आम बीमारी है। मस्क्युलर डिस्ट्राफी मांसपेशियों की बीमारियों का एक समूह है जिसमें खासकर तीन बातें आम होती हैं; मसलन ये वंशानुगत होती हैं, ये प्रगतिशील होती हैं और प्रत्येक विकार के विशिाष्ट अभिलक्षण और मांसपेशियों में कमजोरी के चुनिंदा पैटर्न होते हैं।
डचीन्न मस्क्युलर डिस्ट्राफी बचपन में निदान होनेवाला सबसे आम घातक आनुवांशिक विकार है, इससे औसतन हर 3500 में से 1 पुरुष (हर साल लगभग 20,000 नए मामले) प्रभावित है। चूंकि यह अनुवांशिक विकार है इसलिए डचीन्न मस्क्युलर डिस्ट्राफी की पारिवारिक पृष्ठभूमि वाले लोगों में इसका खतरा ज्यादा होता है। अब तक डचीन्न मस्क्युुलर डिस्ट्राफी का कोई ज्ञात इलाज नहीं है। वर्तमान में उपलब्ध उपचार विकल्पों का लक्ष्य लक्षणों को नियंत्रित कर जीवन की गुणवत्ता बढ़ाना होता है। कुछ दवाओं का इस्तेमाल लक्षणों में सुधार के लिए किया जा रहा है, लेकिन उनके प्रभाव अभी तक प्रमाणित नहीं हो पाए हैं।
एलटीएमजी अस्पताल व एलटीएम मेडिकल कॉलेजसायन के प्रोफेसर व न्यूरोसर्जरी विभागाध्यक्ष और न्यूरोजेन ब्रेन एंड स्पाइन इंस्टीट्यूट के निदेशक डॉ आलोक शर्मा ने कहा ,‘‘  हमारे लोगों के बीच मस्क्युलर डिस्ट्राफी के बारे में बहुत कम जागरूकता है। छोटे शहरों और गांवों में ज्यादातर लोगों को इस बीमारी के बारे में पता नहीं है। कई लोग इस बीमारी को पोलियो समझकर लंबे समय तक भ्रम पाले रहते हैं जब तक कि बच्चे में इस बीमारी के प्राथमिक लक्षण नजर नहीं आने लगते हैं। वहीं कुछ लोग यह सोचकर हर्बल उपचार में लगे रहते हैं कि वे बच्चे को ठीक कर लेंगे।’’
मस्क्युलर डिस्ट्राफी एक प्रगतिशील हालत है, जो गंभीर रूप से दुर्बल कर देती है और व्यक्तियों के जीवनकाल और जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित करती है। वास्तव में डचीन्न मस्क्युलर डिस्ट्राफी को एक ऐसी लाइलाज बीमारी करार दिया गया है जो युवा जीवन में कटौती करती है। लाइलाज बीमारी मांसपेशियों के सतत अध:पतन की प्रक्रिया का कारण बनती है, जिसके परिणामस्वरूप गतिशीलता में कमी आती है, सांस की समस्या होती है, हार्ट फेल्योर और अंत में अकाल मृत्यु की स्थिति बनती है।
न्यूरोजेन ब्रेन एंड स्पाइन इंस्टीट्यूट की उप निदेशक और चिकित्सा सेवा प्रमुख डॉ. नंदिनी गोकुलचंद्रन ने कहा, ‘‘ डचीन्न मस्क्युलर डिस्ट्राफी सबसे गंभीर रूप है, जहां इन बच्चों का जीवनकाल 20-22 वर्ष में सिमट जाता है। यह ऐसे बच्चों के अभिभावकों के लिए भावनात्मक, शारीरिक और आर्थिक रूप से आघात की तरह होता है। चूंकि बीमारी की प्रगतिशीलता को रोकने या नियंत्रित करने का कोई उपचार का साधन नहीं है ऐसे में परिवार अपने बच्चे को मुरझाते देखने को विवश हो जाता है। इसलिए हमें अपना नजरिया बदलने की जरूरत है और उपचार की ऐसी रणनीति को आजमाना चाहिए जो कम से कम बीमारी की प्रगति को नियंत्रित कर सके। स्टेम सेल थेरेपी हालिया वर्षों में उपचार के विकल्प के रूप में उभरी है, जो बीमारी की प्रगतिशील प्रकृति पर प्रभाव डालने में कारगर साबित हुई है।आज हम श्री दीनबंधु रॉय की केस स्टडी प्रस्तुत कर रहे हैं। वे 27 वर्षीय पुरुष हैं जिनमें डचीन्न मस्क्युलर डिस्ट्राफी का ज्ञात मामला है। उनके बड़े भाई और मामा दोनों में इस लाइलाज आनुवांशिक विकार का निदान हुआ है, जिसके चलते दीनबंधु के अभिभावकों ने 5 साल की कम उम्र में ही उनकी जांच कराई और उन्हें डचीन्न मस्क्युलर डिस्ट्राफी से पीड़ित पाया। इसके लक्षण अक्सर गिरने से शुरू हुए और बाद में अंगूठे का घूम जाना, बोतल खोलने और कागज फाड़ने में कठिनाई जैसी दिक्कतें नजर आर्इं।
दीनबंधु का केस डचीन्न मस्क्युलर डिस्ट्राफी का ऐसा मामला है जिसमें 15-16 वर्ष की आयु होने तक वे स्वतंत्र रूप से चल-फिर सकने, सीढ़ियां चढ़ने में सक्षम थे। वे आशा, स्वीकृति, कड़ी मेहनत, सकारात्मक दृष्टिकोण और दृढ़ संकल्प के एक परिपूर्ण उदाहरण हैं। चूंकि परिवार में मस्क्युलर डिस्ट्राफी का इतिहास रहा है, दीनबंधु ने वास्तव में कई डॉक्टरों से संपर्क नहीं किया, वे सामान्य दवाओं में यकीन करते थे और अपनी हालत में सुधार लाने के लिए पुनर्वास पर ज्यादा भरोसा करते थे।
उन्होंने अपनी बीमारी को अपने और अपने पिता के सपनों की राह में रोड़ा नहीं बनने दिया। दीनबंधु कहते हैं, ‘‘ मेरे पिता और मैं; दोनों चाहते थे कि मैं इंजीनियर बनूं। मैं हमेशा ही से पढ़ाई में अच्छा था और मुझे संगरुर में एक प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला मिल गया। इसके अलावा अपने विकार से छुटकारा पाने के लिए मैंने अपने छात्रावास में ऊपरी मंजिल पर कमरा लिया, और ऐसी कई चीजों की तरह मैंने अपनी कमजोरी को अपने जीवन के लक्ष्य की राह में रोड़ा नहीं बनने दिया।’’ दीनबंधु को कॉलेज के प्लेसमेंट के माध्यम से सामान्य कोटे में बीएसएनएल कंपनी में नौकरी मिल गई। अपने सपने को साकार करने में उनकी बुद्धिमत्ता और आत्मविश्वास पर्याप्त था। 22 वर्ष की आयु से दीनबंधु की हालत बिगड़ने लगी। वे व्हीलचेयर पर सिमटने को बाध्य हो गए और जगह बदलने, गतिशीलता, संतुलन बनाए रखने में उन्हें तकलीफ होने लगी और स्वतंत्र रूप से अपनी दैनिक गतिविधियों को अंजाम देने में सक्षम नहीं थे। अपने अधिकांश नियमित काम के लिए उन्हें किसी की सहायता की जरूरत पड़ती थी। वर्ष 2015 के शुरुआती महीनों में घुटने में दर्द की शिकायत होने पर दीनबंधु एक आर्थोपेडिक डॉक्टर के पास गए, जहां उन्हें मस्क्युलर डिस्ट्राफी के लिए स्टेम सेल थेरेपी के बारे में पता चला। दिसंबर 2015 में दीनबंधु न्यूरोजेन में आए। जांच करने पर उनमें पिंडली की मांसपेशियों में जकड़न, बैठने और खड़े होने की गलत भावभंगिमा, अक्सर गिर पड़ने, चलने और खड़े होने में संतुलन बनाने में परेशानी जैसी प्रमुख समस्याओं का निदान हुआ।
न्यूरोजेन में दीनबंधु का एक कस्टमाइज्ड रिहैबिलेशन प्रोग्राम के साथ स्टेम सेल थेरेपी उपचार शुरू हुआ। पुनर्वास कार्यक्रम का उद्देश्य सभी मांसपेशियों की शक्ति में सुधार, बिना थकान के थेरेपी के जरिए प्रभावित क्षेत्रों की ताकत बढ़ाना और मरीज की समग्र सहनशक्ति बढ़ाना था। उन्हें ऐसे एक्सरसाइज कराए गए जिससे उनके संतुलन, चलने, सीढ़ियां चढ़ने, रोलिंग, पोस्चर और उसकी पकड़ में सुधार हुआ। ये एक्सरसाइज मरीज को पर्याप्त आराम के अंतराल के साथ एक व्यवस्थित पैटर्न में कराए गए। साथ में रिहैबिलेशन प्रोग्राम का उद्देश्य उनके जीवन की समग्र गुणवत्ता में सुधार लाना था। 6-9 महीनों में दीनबंधु में यह सुधार नजर आने लगा कि अपनी कमठी (स्पिलिंट) और जूते के सहारे उनके बैठ पाने के संतुलन में सुधार आया। उनके घुटनों की गतिशीलता में सुधार आया। खड़े रहने के संतुलन में भी सुधार आया। उनके फॉल्स ( गिर पड़ने की दशा) पूरी तरह बंद हो गए हैं और इसलिए वह अब अपने पुनर्वास को व्यवस्थित ढंग से कर पाने में सक्षम हैं। उनकी मजबूती बढ़ गई है और किसी भी गतिविधि को अंजाम देने की उनकी सहनशक्ति भी बढ़ गई है। उनके हाथों और पैरों की जकड़न भी काफी हद तक कम हुई है।
डॉ. नंदिनी गोकुलचंद्रन ने कहा, ‘‘ मस्क्युलर डिस्ट्राफी के मरीजों के प्रबंधन में स्टेम सेल थेरेपी एक उत्पादक और सुरक्षित उपाय है। इससे इस तरह के रोगियों में कार्यात्मक और रेडियोलॉजिकल सुधार देखने को मिले हैं, जो उनके जीवन की गुणवत्ता को बढ़ा देता है।’’
नवी मुंबई के नेरुल में स्थित न्यूरोजेन ब्रेन एंड स्पाइन इंस्टीट्यूट भारत का पहला और एकमात्र संस्थान है जो स्टेम सेल थेरेपी प्रदान करने के साथ ही व्यापक पुनर्वास उपलब्ध कराता है। इस 11 मंजिला सुपर स्पेशलिएटी अस्पताल में 51 बेड और विशेष न्यूरो-रीहैबिलेशन थेरेपी सेंटर हैं। न्यूरोजेन ब्रेन एंड स्पाइन इंस्टीट्यूट की स्थापना सुरक्षित और प्रभावी तरीके से स्टेम सेल थेरेपी के जरिए लाइलाज न्यूरोलॉजिकल समस्याओं से पीड़ित मरीजों की मदद के लिए, उनके लक्षण और शारीरिक विकलांगता से राहत प्रदान करने के लिए की गई है।  न्यूरोजेन ब्रेन एंड स्पाइन इंस्टीट्यूट न्यूरोलॉजिकल विकार मसलन, आॅटिज्म, सेरेब्रल पाल्सी, मानसिक मंदता, ब्रेन स्ट्रोक , मस्क्युलर डिस्ट्रॉफी , स्पाइनल कॉर्ड इंजुरी , सिर में चोट, सेरेबेलर एटाक्सिया , डिमेंशिया , मोटर न्यूरॉन रोग, मल्टीपल स्केलेरॉसिस और न्यूरोसाइकिएट्रिक विकार के लिए स्टेम सेल थेरेपी और समग्र पुनर्वास प्रदान करता है। अब तक इस संस्थान ने 43 से अधिक देशों के 4500 मरीजों का सफलतापूर्वक उपचार किया है।
न्यूरोलॉजिकल विकारों के संदर्भ में उत्कृष्टता के अनूठे अंतरराष्ट्रीय केंद्र ‘न्यूरोजेन ब्रेन एंड स्पाइन इंस्टीट्यूट’ की स्थापना एलटीएमजी अस्पताल व एलटीएम मेडिकल कॉलेज, सायन, मुंबई के प्रोफेसर व न्यूरोसर्जरी विभागाध्यक्ष डॉ. आलोक शर्मा ने की। डॉ. आलोक शर्मा एक विश्व प्रसिद्ध न्यूरोसर्जन, न्यूरो साइंटिस्ट और प्रोफेसर हैं, जो न्यूरोसर्जरी, न्यूरोसाइंस और स्टेम सेल के क्षेत्र में व्यापक शल्य विशेषज्ञता और अनुभव के लिए प्रतिष्ठित हैं।
डॉ आलोक शर्मा ने आगे कहा, ‘‘उन लाखों को मरीजों को जिन्हें हमने पहले कहा कि अब चिकित्सकीय रूप से आपकी बीमारी के लिए कुछ नहीं किया जा सकता है, अब उचित विश्वास के साथ कह सकते हैं कि स्टेम सेल थेरेपी व न्यूरोरिहैबिलेशन की युग्मित चिकित्सा की उपलब्धता के साथ ‘अच्छे दिन आने वाले हैं’।’’


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