चंडीगढ़, 05 दिसंबर, 2016: केन्द्र सरकार द्वारा गठित किए गए विशेष जांच दल (एसआईटी) को 1984 सिख नरसंहार के लिए पीडि़तों को न्याय प्रदान करने के अवसर को बेकार नहीं जाने देना चाहिए। ये बात एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया ने आज चंडीगढ़ में इस नरसंहार पर एक अभियान डाइजेस्ट की शुरुआत के मौके पर कही। 

‘‘32 ईयर्स एंड वेटिंग: एन इरा ऑफ इनजस्टिस फॉर द 1984 सिख मासेकर’’, शीर्षक से शुरू किए गए इस अभियान डाइजेस्ट की रूपरेखा में बताया गया है कि कैसे बीते तीन दशकों में इस नरसंहार पर पर्दा डाला गया और साथ ही बीते 32 सालों में विभिन्न आधिकारिक जांच के स्तर के बारे में भी बताया गया है। डाईजेस्ट में इस नरसंहार से बचे लोगों के व्यक्तिगत अनुभवों को भी शामिल किया गया है। 

दिल्ली पुलिस ने इस नरसंहार के कुछ समय बाद ही सैंकड़ों मामलों की जांच को प्रमाण ना होने की बात कहते हुए बंद कर दी। जनवरी, 2015 में केन्द्र सरकार ने एक विशेष जांच दल (सिट) को गठित किया ताकि नरसंहार से संबंधित मामलों की फिर से जांच की जा सके लेकिन ये जांच काफी धीमी चल रही है। नवंबर तक, दोबारा से जांच के लिए सिर्फ 58 मामलों की ही पहचान की गई है। 

इस बारे में प्रतिक्रिया देते हुए सनम सुतिरथ वजीर, कैम्पेनर, एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया ने कहा कि ‘‘सिट ने नरसंहार के पीडि़तों और उससे बचने वाले लोगों को उम्मीद जगाई थी कि आखिर अब उन्हें इंसाफ मिलेगा। पर सिट की कार्यप्रणाली में पारदर्शिता का अभाव है और ऐसे में लोगों को फिर से पीड़ा हो रही है।’’

सिट के पास अधिकार है कि जिन आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ उपयुक्त प्रमाण उपलब्ध हैं, उनके खिलाफ आरोपपत्र दायर कर सकें। शुरुआत में सिट को इस काम को पूरा करने के लिए छह माह दिए गए थे लेकिन अगस्त 2015 और अगस्त 2016 में इसे दो बार विस्तार दिया गया। अब कहा जा रहा है कि सिट अपनी जांच को गठन के दो साल बाद फरवरी, 2017 में पूरा करेगी। 

जून, 2016 में एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया और जाने माने सामाजिक कार्यकर्ताओं, पत्रकारों, वकीलों और राजनीतिक नेतृत्व ने इस मामले की प्रभावी जांच के लिए लगातार अपनी सिफारिशें और सुझाव दिए हैं। उन्होंने इस विषय के संबंध में जांच के साथ ही पीडि़तों को क्षतिपूर्ति और कानूनी सुधारों के लिए भी प्रस्ताव एवं सुझाव दिए हैं जिन्हें गृह मंत्रालय को सौंपा जाएगा।  

नवंबर, 2014 से अब तक 6 लाख से अधिक लोगों ने, जिनमें से अधिकांश पंजाब से हैं, ने एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया के अभियान का समर्थन किया है जिसमें नरसंहार के  पीडि़तों के लिए इंसाफ मांगा जा रहा है। 

इस मौके पर नरसंहार के दौरान जीवित बची दर्शन कौर की जिंदगी पर एक लघु फिल्म भी दिखाई गई। हिंसा के दौरान दर्शन कौर की उम्र सिर्फ 21 साल थी और उसने इस हिंसा में अपने पति और 12 अन्य रिश्तेदारों को खोया है। 

Post a Comment

أحدث أقدم