चंडीगढ़। आर्य समाज सेक्टर 22 ने   महाशिवरात्रि ऋषि बोधोत्सव धूमधाम से  मनाया। इस मौके पर डॉ. विक्रम विवेकी ने कहा कि मूलशंकर  इसी दिन शंकर के मूल को ढूंढने क लिए घर से चल दिए थे। ईश्वर को पाने के लिए उन्होंने अपने सारे सुखों का परित्याग किया। स्वामी दयानंद ने गूढ़ अध्ययन के आधार पर पाश्चात्य और भारतीय विद्वानों के मतभेदों को दूर किया। महर्षि दयानंद जन्म के साथ कर्म से भी ब्राह्म
ण थे। उन्होंने बताया कि पवित्र वाणी केवल वेद ही हैं। विवेकी ने कहा कि अच्छे कर्मों के कारण ही हम सबको मनुष्य का चोला प्राप्त हुआ है।  हमें जीवन में चिंतन , मनन और सत्य का अन्वेषण करके ही  आचरण करना चाहिए। तभी शुद्ध चेतन्य का परिचय मिलेगा। 
   नरेंद्र आहूजा ने अपने संबोधन में कहा कि हमें भी ऋषि दयानंद की तरह अपने जीवन में बोध करना चाहिए। ईश्वर के गुणों को अपने अंदर धारण करने का प्रयत्न करना चाहिए। हमें स्वार्थ से ऊपर उठकर असमर्थ लोगों की सहायता करनी चाहिए। हमारा आसन परमात्मा के निकट होना चाहिए और उसकी प्रत्येक आज्ञा का यथा पालना करनी चाहिए। 
    कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे प्रिंसिपल आरसी जीवन ने उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि प्रत्येक महापुरुष विलक्षण गुण का प्रतिनिधित्व करते  हैं।  महर्षि दयानंद  में दया, देशभक्ति, मर्यादा, ईश्वर भक्ति आदि कई गुण थे।  उन्होंने कहा कि स्वामी जी का प्रादुर्भाव  विचित्र परिस्थितियों में हुआ था। उन्होंने ईश्वर के प्रति लोगों की सोच को बदला। प्रिंसिपल जीवन ने  कहा कि लोग तो अपने स्वार्थ पूर्ति के लिए ईश्वर के नाम पर लोगों को गुमराह करते हैं।  उन्होंने कहा कि महर्षि दयानंद ने बताया था कि ईश्वर जन्म नहीं लेता। वह तो कण- कण में विद्यमान है। वह तो रचयिता है। वह तो जन्म देने वाला है। इंसान कभी भी ईश्वर नहीं हो सकता है। जीव अल्पज्ञ है। जीवन के उत्थान और कल्याण के लिए ईश्वर की वाणी वेद है। वेद में कभी भी परिवर्तन नहीं हो सकता है।  ईश्वर स्वयं परिपूर्ण है। महर्षि दयानंद का दर्शन भी वेद ही है।  हम सबको मिलकर सच्चाई का प्रकाश फ़ैलाने का प्रयास करना  चाहिए। कुलदीप विद्यार्थी ने मधुर भजन पेश कर सबको आत्मविभोर कर दिया। 

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