चंडीगढ़, 20 दिसंबर, 2017: फोर्टिस हॉस्पिटल, मोहाली ने भारत में पहली बार वैरिकोज वेन्स (नसों में सूजन) के इलाज के लिए एक नई तकनीक ग्लू क्लोजर तकनीक को प्रस्तुत किया है। यह आधुनिक तकनीक एक सरल तकनीक है जिसके लिए ट्यूमसेंट एनस्थीसिया की जरूरत नहीं है। एक विशेष कैथेटर रोगी की नस में लगाया जाता है और नस को एक विशेष टर्किश ग्लू के साथ अलग किया जाता है। डॉ. रावुल जिंदल, डायरेक्टर, वस्कुर्लर सर्जरी, फोर्टिस हॉस्पिटल, मोहाली और डॉ.मर्टेस, प्रोक्टर, आरडी ग्लोबल, तुर्की ने आज मीडिया कर्मियों से इस अनूठी तकनीक के बारे में बातचीत की।
वैरिकोज वेन्स, शरीर के किसी भी हिस्से में हो सकता है लेकिन यह विशेषकर पैरों में देखा जाता है। इसकी बाहरी दिखावट से अलग इसके चलते होने वाला दर्द बढ़ता जाता है और नसों का गलना शुरू हो जाता है और इस से संबंधित किसी भी जटिलता से बचने के लिए जल्द से जल्द इसका इलाज करवाना चाहिए। इसके सबसे सामान्य लक्षणों में से कुछ में नसों का बैंगनी या नीले रंग का हो जाना होता है, जिसमें कुछ नसे मुडऩा भी शुरू कर देती हैं। परिस्थितियां उस समय दर्दनाक हो जाती हैं जब टांगों में भारीपन या जलन महसूस होने लगती है, उनमें धडक़न महसूस होती है, मांसपेशियों में ऐंठन और टांगों के निचले हिस्से में सूजन होने लगती है।
लंबे समय तक बैठे या खड़े होने के बाद किसी को भी भयंकर दर्द का सामना करना पड़ता है। नई ग्लू क्लोजर उपचार में एक पेटेंट्ड वेनाब्लॉक कैथेटर का उपयोग किया जाता है जो कि एक नई एंडोवस्कुर्लर तकनीक है जिससे वेनुएस रीफ्लक्स रोग का इलाज किया जा सकता है। भारत में मोको तकनीक (मैकिनोको कैमिकल एबिलिऐशन ऑफ वैरिकोज वेन्स) की शुरुआत डॉ.रावुल जिंदल ने की है जिन्होंने एक बार फिर से भारत में इस नई और बेहद दर्द रहित तकनीक को सबसे पहले पेश किया है। यह नई तकनीक विशेषकर उन लोगों को उपचार के लिए सुझाई जाती है जो सुई की चुभने के प्रति काफी संवेदनशील होते हैं और साथ-साथ अधिक वजन वाले होते हैं।
इस तकनीक के बारे में बात करते हुए, डॉ. रावुल जिंदल ने कहा कि ‘‘यह एक तकनीक है जो वैरिकोज वेन्स के उपचार में बेहद प्रभावी है, क्योंकि पारंपरिक उपचार में मरीज को एनस्थीसिया देने और अस्पताल में कुछ अधिक समय के लिए रहना पड़ता है। जबकि इस नई तकनीक से मरीज को एनस्थीसिया दिए बिना और कई सारे कट्स की भी जरूरत नहीं होती है। इसे विशेष तौर पर आसान इलाज के तौर पर डिजाइन किया गया है। नया उपचार न केवल कम दर्दनाक होता है, बल्कि सिर्फ 15 मिनट में एक पैर का इलाज किया जा सकता है और एक घंटे के अंदर मरीज घर जा सकता है। यह महत्वपूर्ण है कि वस्कुर्लर सर्जन जैसा एक विशेषज्ञ इस सर्जरी को कर सकता है।’’
इस रोग के प्रमुख लक्षणों को आम तौर पर टांगों में खुजली और भारीपन, टखनों में सूजन, त्वचा के नीचे नीले रंग की नीली धमनियां दिखना, लाली, खुष्की और त्वचा की खुजली आदि हैं। कुछ लोगों में, टखने से ऊपर की त्वचा सिंकुड़ सकती है क्योंकि इसके नीचे वसा काफी सख्त हो जाती है। इसके अन्य लक्षणों में सफेद आना, अनियमित निशान-जैसे पैच आदि शामिल होते हैं जो टखनों पर दिखाई दे सकते हैं या मरीज को गंभीर और ठीक ना होने वाले अल्सर भी हो सकते हैं। डॉ. जिंदल ने कहा कि ये रोग शिराओं की प्रक्रिया में गड़बड़ी का संकेत देता है और इसका मूल्यांकन एक वस्कुर्लर सर्जरी स्पेशलिस्ट्स से ही करवाया जाना चाहिए।
डॉ जिंदल ने आगे बताया कि ‘‘उपचार के बाद भी, रोगी को कुछ दवाएं लेनी पड़ती हैं और उपचार के बाद विशेष ख्याल भी रखना होता है। फोर्टिस हॉस्पिटल, मोहाली में, हम हमेशा सर्वश्रेष्ठ मरीज देखभाल के लिए अत्याधुनिक तकनीकों को प्रस्तुत करने में विश्वास करते हैं। हम आधुनिक मॉडिलिटी ऑफ लेजर्स, रेडियोफ्रिक्वेंसी और फोम स्केलेरोथैरेपी के माध्यम से वैरिकोज वेन्स का इलाज कर रहे हैं। ग्लू प्रोसीजन में अल्ट्रासाउंड गाईडेंस में नसों में पंक्चर करना शामिल होता है। इस तकनीक को नसों को अलग करने के लिए एक विशेष तुर्की ग्लू के साथ मिलाया जाता है। यह पारंपरिक सर्जरी की तुलना में सुरक्षित और पीड़ारहित है। मरीज उसी दिन घर लौट सकते हैं जबकि पारंपरिक सर्जरी में मरीज को अस्पताल में भर्ती करना पड़ता है।’’
उन्होंने बताया कि ग्लू प्रोसीजन को बिना लोकल एनस्थीसिया के किया जाता है और इससे कोई निशान भी नहीं पड़ता है। इसमें ना तो कोई कट लगता है और ना कोई स्टिचेज (टांके) आदि लगाए जाते हैं। ऐसे में इससे टिश्यूज की न्यूनतम क्षति होती है और यह उन रोगियों में विशेष रूप से उपयोगी है जिनका रक्त काफी पतला होता है, मोटापे से ग्रस्त होते हैं, जिनमें एक गोइन संक्रमण होता है और बुजुर्ग या ऐसे मरीज होते हैं जिनको सर्जरी से डर लगता है। उपचार के 24 घंटे के अंदर मरीज अपनी सामान्य जिंदगी में वापिस लौट जाता है, उसे सिर्फ भारी-भरकम व्यायाम से परहेज करना होता है।
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