प्रवेश फरंड चंडीगढ़ 

परमात्मा ने इतनी सुंदर धरती की रचना की है लेकिन मनुष्य का व्यवहार इतना खराब हो गया है कि आज इस मानव से मानवता ही चली गई है | हम इतनी खूबसूरत धरती को बिगाड़ रहे हैं | इस धरती को संवारने की जिम्मेदारी हमारी है | हमें अपने कर्मों के द्वारा, अपनी सोच के द्वारा, अपने जीवन के द्वारा यही बात याद रखनी है कि एक भी छोटी सी कुछ बात ऐसी न कर दें जिसका अंतिम परिणाम बस कुछ खराब करने वाला हो जाए | जैसे एक शायर ने भी कहा है कि- लम्हों ने खता की है और सदियों ने सजा पाई है | हमारा कर्म, हमारी बात अगर विपरीत दिशा की ओर चल पड़ी तो फिर निश्चित ही यह नुकसान होना है, वह नुकसान फिर हमारा हो, सामने वाले का हो, किसी का भी, किसी भी रूप में हो | 

हमने तो सिर्फ और सिर्फ इस बात पर केन्द्रित रहना है कि हम जहां अपना सुधार करते चले जायें, अपने आपको पूरा पूरा दिन इस परमातमा के एहसास में रखें | इस निरंकार के भय में रहकर एक-एक पल बिताएं | हम जो भी कार्य कर रहे हों वह करते-करते इस प्रभु का एहसास साथ रख सकते हैं | इस एहसास में जब हम रहेंगे तो फिर इस दुनिया को हम जहां खूबसूरत बनाने में अपना योगदान देंगे, वहीं औरों को भी जब यह दिखेगा कि एक व्यक्ति अगर हमें कुछ अच्छा कार्य करते दिखता है तो हमारा भी मन करता है कि उससे पूछें कि आप यह अच्छा कार्य क्यों कर रहे हैं, आपने यह कहां से सीखा है? फिर हम कोशिश करें कि वह कार्य हम भी करें | ऐसे ही हम जब स्चयं एक अच्छा काम करेंगे, अपने आपको बेहतर इंसान बनाएंगे फिर हर एक का यही दिल करेगा कि उस व्यक्ति का जीवन इतना खूबसूरत हे, उसकी बोली इतनी मधुर है, वह हमेशा उपयोगी ही सबित हुआ है हर एक के लिए तो क्यों न ऐसा जीवन हम भी बना लें | फिर वह व्यक्ति हमें जब भी मिलेगा वह हमसे और मिलने की चाह रखेगा | उसके मन में हरगिज़ यह बात नहीं आएगी कि यह व्यक्ति अच्छा नहीं है, इससे संपर्क तोड़ना है | हम खुद मनुष्य हैं ओर यह चयन करने का अवसर हमारे पास भी उतना ही है जितना सामने वाले के पास है | शरीर के पांच तत्वों की जो बात हम करते हैं, उन्हीं तत्वों से हम भी बने हैं और वह भी बने हैं |

ब्रह्मज्ञान के बाद हमें पता चलता है कि यह ब्रह्मज्ञान की दृष्टि हमारे जीवन में क्या फ़र्क ले आती है? यह द़ष्टि वही है जो हमें अपनी पहचान करा देती है और फिर अपनी पहचान करने के बाद हमने अपने में और सामने वाले में जब फ़र्क ही नहीं समझा तो फिर यह प्यार की बात संभव हो पायेगी कि दिल से नफ़रतें हट जाएंगी, मन से भेदभाव हट जाएंगे और केवल मात्र प्यार ही रहेगा |

हमने अपने जीवन में वह युग लाना है जिसके लिए कहा गया कि वो पुराने युग तो बहुत अच्छे थे, पर यह कलयुग अच्छा नहीं है | तो युग की तो इसमें कोई गलती नहीं है, गलती तो हम इंसानों की है | हम क्यों न अपने जीवन को ऐसा बना लें कि फिर से हमारे मन में वह राम राज्य वाली बात आ जाए, हमारे मन में फिर यह प्रभु इस तरह बस जाए कि हम अपने मन में सिर्फ इस निरंकार को ही रखें और किसी ऐसे बुरे भाव को न रखें, कोई ऐसे विकार हमारे मन में न रहें | दातार सभी पर कृपा करें कि ऐसा खूबसूरत जीवन हरएक का बन जाए, जैसा सन्तों ने चाहा है, जैसा गुरुओं, पीरों, पैगंबर, वलियों ने चाहा है | हम सब सही मायनें में मनुष्य ही बनकर जियें | हम अपना, समाज का और पूरे विश्व का भी सिर्फ भला करें | 


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