चंडीगढ़। पूर्व केंद्रीय मंत्री चंडीगढ़ जन-कल्याण मंच के अध्यक्ष डॉहरमोहन धवन ने शहर में आवारा कुत्तों की भयानक समस्याओं को लेकर नगर निगम के आला अफसरों को आड़े हाथों लिया है। उन्होंने अफसरों को चेतावनी दी है कि अगले छह माह के अंदर कुत्तों का कोई हल नहीं निकला तो शहर भर से आवारा कुत्तों को पकड़कर सम्बंधित अफसरों के घरों में छोड़ा जाएगा। मंच के अध्यक्ष धवन ने कहा प्रतिदिन आवारा कुत्ते लोगों को काट रहे हैं  और अफसरशाही गहरी नींद में हैं। इसलिए एमसी के आला अधिकारी आवारा कुत्तों से सम्बंधित समस्याओं का समाधान समय रहते कर लें। 
 पिछले कई सालो में शहर में आवारा कुत्तो की संख्या में हर साल बढ़ोतरी हो रही है।  हालत यह है की आवारा कुत्तो का शहर में जबरदस्त आतंक फैल गया है।  कोई दिन ऐसा नहीं होता जिस  दिन शहर के लोग आवारा कुत्तों  का शिकार नहीं बनते  हैं।

        पूर्व केंद्रीय मंत्री चण्डीगढ़ जन कल्याण मंच के अध्यक्ष डॉ हरमोहन धवन ने खेद प्रकट करते हुए कहा कि शहर पर अफसर शाही इतनी हावी है की जन समस्याओं  के प्रति बिलकुल ही संवेदनहीन हैं।  कुत्तों के काटने पर पीड़ित लोगों के दुःख दर्द और आर्थिक नुक्सान की भी  इन अधिकारयों को परवाह नहीं है। इन अफसरों को अपनी जिम्मेदारी का ऐहसास नहीं है।  
 चंडीगढ़ में अधिकांश अफसर पंजाब व् हरियाणा के दूर - दराज स्थानों से डेपुटेशन  पर  आते हैं। वह चंडीगढ़ को स्वर्ग, पिकनिक स्थल और मौज मस्ती का कार्यालय मानते  है।  इस दौरान अफसर शाहों का चंडीगड़ की जनता की समस्याओ से कोई लेना देना नहीं होता है।  अफसर यह मानते है की वो बड़ी से बड़ी गलती क्यों कर लें।  उन पर कोई गाज नहीं गिर सकती है।  वह मानते है की ज्यादा से ज्यादा सजा यह है की  उन्हें पेरेंट्-स्टेट भेजा जा सकता है।  अफसरशाही की इसी सोच ने शहर को नर्क बना दिया है।  
            धवन के अनुसार  पिछले कई सालों से कुत्तों के काटने के आतंक से शहर में हाहाकार मचा हुआ है।  दुर्भाग्यपुर्ण है की इस मसले पर हाई कोर्ट ने कभी कई बार इन अफसरों को फटकार लगायी, लेकिन इन अफसरों की मोटी चमड़ी पर कोई असर नहीं पड़ा।  वर्ष 2001 में वायदा किया गया था की शहर में दो डॉग पाउंड्स बनाये जायेंगे, लेकिन वायदे का वही हुआ, जैसे की अब तक वायदे किये जा रहे थे।  शहर की जनता की चिख पुकार भी इन अफसरों के बहरे कानों पर कोई असर नहीं पड़ रहा है।  
                   मंच के अध्यक्ष का दावा  है कि शहर में आवारा कुत्तो की संख्या वर्ष 2012 में 8,500 थी, अब वही संख्या बढ़कर 16,000 के ऊपर पहुंच गयी है।  हालत यह है की कुत्तों के काटने की संख्या प्रतिदिन के हिसाब से 70 पहुंच गयी है।  नगर निगम के अधिकारी कहते हैं की उन्होंने पिछले दो सालो  में 8,600 आवारा कुत्तों की नसबंदी की है। नसबंदी का काम एक प्राइवेट एजेंसी को दिया गया है।  अब जनता सवाल कर रही है और आरोप भी लगा रही है की क्या यह नसबंदी धरातल पर नहीं बल्कि कागजो तक ही सिमित है। इसलिए आपसे अनुरोध है की उक्त आरोपों की तुरंत जाँच कराई जाये।  


           पूर्व केंद्रीय मंत्री धवन ने एक शोध का हवाला देते हुए कहा कि कुत्तों की आयु 8 से 13 साल की होती है।  जबकि आवारा कुत्तो की आयु 3 से 5 साल तक की ही होती है।  इसका मुख्य कारण आवारा कुत्तों का आहार खुले में फेका हुआ गार्बेज होता है।  कुपोषण के कारण ही आवारा कुत्तों की आयु पालतू कुत्तों से काफी काम होती है।  यह भी देखने में आया है की जिन शहरों में खुले हुए गार्बेज को कण्ट्रोल किया जाता है वहाँ आवारा कुत्तों की संख्या भी कम हो जाती है, क्योंकि खुला हुआ गार्बेज, जो इनकी मुख्य खुराक है वह नहीं मिल पाती है।  

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