चंडीगढ़, 12 दिसंबर, 2017ः वैश्विक रूप से फेफड़ों का कैंसर सबसे ज्यादा पाया जाने वाला कैंसर बन गया है। कैंसर से संबंधित ज्यादातर मौतें इसी के कारण होती हैं। भारत में फेफड़ों के कैंसर के बढ़ते मामलों के कारण, डॉ. विनोद निम्ब्रान, निदेशक, ऑन्कोलॉजी- इंडस सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल, मोहाली, ने मीडिया से बातचीत के दौरान लोगों में जागरूकता बढ़ाने, समय पूर्व बीमारी की पहचान और उसका सही निदान करने के महत्व के बारे में चर्चा की। मीडिया से चर्चा में उन्होंने सफल इलाज और देखभाल के नये तरीके- टारगेटेड थैरेपी के साथ-साथ पर्सनलाइज्ड मेडिसिन के महत्व के बारे में भी बताया। 
चंडीगढ़ में फेफड़ों के कैंसर के बढ़ते मामलों और कारणों पर प्रकाश डालते हुए डॉ. विनोद निम्ब्रान ने कहा, ‘‘पिछले कुछ सालों में मैंने ये देखा है कि फेफड़ों के कैंसर के मामलों में इजाफा हुआ है। जहां पुरुषों में 7-8 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई, वहीं महिलाओं में 3-4 से प्रतिशत की। भारत में तम्बाकू का सेवन बहुत ही आम बात होती है, जोकि फेफड़ों के कैंसर के लिये सबसे बड़ा खतरा/कारण होता है। तम्बाकू धूम्रपान और साथ ही कैंसरकारी तत्वों जैसे एस्बेस्टस, रेडॉन, वायु प्रदूषण और डीजल के धुंए के संपर्क में आना भी फेफड़ों के कैंसर के मुख्य कारण हैं। हालांकि, इन कैंसरकारी कारणों से सुरक्षित रहकर फेफड़ों के कैंसर से बचा जा सकता है।’’
साल 2012 के अनुसार, फेफड़ों के कैंसर के 18 लाख मामले सामने आये है, जिनमें 58 प्रतिशत कम विकसित होने वाले क्षेत्रों में पाये गये। विकासशील देशों में, फेफड़ों का कैंसर पुरुषों में आम होता है और महिलाओं में यह तीसरा सबसे बड़ा रोग है। समय पूर्व फेफड़ों के कैंसर का पता लगने के महत्व के बारे में जोर देते हुए डॉ. विनोद निम्ब्रान ने कहा, ‘‘फेफड़ों के कैंसर का प्रभावी रूप से इलाज कर पाना संभव नहीं हो पाता, क्योंकि ज्यादातार मरीजों में इसका पता अंतिम चरण में चलता है। चंडीगढ़ में 10 में से 6 मामलों का पता अंतिम चरण में चलता है। इस अंतिम चरण में केवल रोगी के जीवित रहने के दिनों को बढ़ाया जा सकता, लेकिन इलाज करना संभव नहीं होता है। फेफड़ों के कैंसर का पता लगाने वाली जांचों में शामिल है सीटी स्कैन, टिशू बायोप्सी और स्प्यूटम साइटोलॉजी। यदि इन जांचों में फेफड़ों के कैंसर के कोई भी संकेत और लक्षण नजर आते हैं तो जल्द से जल्द किसी ऑन्कोलॉजिस्ट को दिखाने की सलाह दी जाती है।’’
फेफड़ों का कैंसर असामान्य कोशिकाओं की अनियंत्रित वृद्धि होती है, जिसकी शुरुआत एक या दोनों फेफड़े से होती है। फेफड़ों के स्वस्थ टिशू में असामान्य कोशिकाओं का विकास नहीं होता है, ये तेजी से विभाजित होकर तीन प्रकार के ट्यूमर का निर्माण करतंे हैं- स्मॉल सेल लंग कैंसर (एससीएलसी), नॉन-स्मॉल सेल लंग कैंसर (एनएससीएलसी) और लंग कार्सिनॉइड ट्यूमर। 
फेफड़ों के कैंसर के उपचार को लेकर हाल-फिलहाल हुए विकास के बारे में डॉ. विनोद निम्ब्रान ने कहा, ‘‘भले ही आज के समय में किसी भी प्रकार के कैंसर का पूर्ण इलाज नहीं है, लेकिन कैंसर के उपचार में काफी सुधार हुआ है। ऑन्कोलॉजी रिसर्च में हालिया उन्नति ने उपचार का साधन तैयार किया है, जिसे टारगेटेड थैरेपी के नाम से जाना जाता है। ये उपचार अब पहले से कहीं अधिक व्यक्तिगत हो गया है। स्टैंडर्ड कीमोथैरेपी से अलग, टारगेटेड थैरेपी शरीर की कोशिकाओं को प्रभावित नहीं करती है। ये केवल मॉलेक्यूलर स्तर पर कैंसर को बढ़ने से रोकती है, जिससे कैंसर की वृद्धि और उसका प्रसार रुक जाता है। टारगेटेड थैरेपी रोगियों के बचने और उनके उपचार की दर को बेहतर बनाने में सफल हुई है। निश्चित रूप से भविष्य में टारगेटेड थैरेपी उपचार का पसंदीदा तरीका होगी, क्योंकि ये केवल कैंसर कोशिकाओं को ही नष्ट करती है और बालों के गिरने और त्वचा के क्षतिग्रस्त होने जैसे साइड इफेक्ट से बचाती है।’’

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